दूसरे का धन तिनकेभर भी नहीं चुराना चाहिए। दूसरों के धन का अपहरण करने से स्वयं अपने ही धन का नाश हो जाता है।

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धनविहीन महान राजा का संसार सम्मान नहीं करता। दरिद्र मनुष्य का जीवन मृत्यु के समान है।

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चुगलखोर व्यक्ति के सम्मुख कभी गोपनीय रहस्य न खोलें

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मुर्ख का कोई मित्र नहीं है। धर्म के समान कोई मित्र नहीं है। धर्म ही लोक को धारण करता है

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अपनी कमजोरी का प्रकाशन न करें। एक अंग का दोष भी पुरुष को दुखी करता है।

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बलवान से युद्ध करना हाथियों से पैदल सेना को लड़ाने के समान है

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आग में घी नहीं डालनी चाहिए अर्थात क्रोधी व्यक्ति को अधिक क्रोध नहीं दिलाना चाहिए

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वन की अग्नि चन्दन की लकड़ी को भी जला देती है अर्थात दुष्ट व्यक्ति किसी का भी अहित कर सकते है।

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विद्या  ही निर्धन का धन है। विद्या को चोर भी चुरा नहीं सकता।

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दूध में मिला जल भी दूध बन जाता है। कार्य करते समय शत्रु का साथ नहीं करना चाहिए।

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