लोग हर मोड़ पे रुक रुक के संभलते क्यूँ है इतना डरते है तो घर से निकलते क्यूँ है

राहत इंदौरी

शाख़ों से टूट जाएँ वो पत्ते नहीं हैं हम आँधी से कोई कह दे कि औक़ात में रहे

राहत इंदौरी

एक ही नदी के है यह दो किनारे दोस्तो दोस्ताना ज़िन्दगी से, मौत से यारी रखो

राहत इंदौरी

फूक़ डालूगा मैं किसी रोज़ दिल की दुनिया ये तेरा ख़त तो नहीं है की जला भी न सकूं।

राहत इंदौरी

उस की याद आई है, साँसों ज़रा आहिस्ता चलो धड़कनो से भी इबादत में ख़लल पड़ता है

राहत इंदौरी

घर के बाहर ढूँढता रहता हूँ दुनिया, घर के अंदर दुनिया-दारी रहती है।

राहत इंदौरी

इन रातों से अपना रिश्ता जाने कैसा रिश्ता है, नींदें कमरों में जागी हैं ख़्वाब छतों पर बिखरे हैं

राहत इंदौरी

रोज़ तारों को नुमाइश में ख़लल पड़ता है चाँद पागल है अंन्धेरे में निकल पड़ता है।

राहत इंदौरी

दोस्ती जब किसी से की जाये, दुश्मनों की भी राय ली जाये

राहत इंदौरी

बन के इक हादसा बाज़ार में आ जाएगा, जो नहीं होगा वो अखबार में आ जाएगा

राहत इंदौरी