इश्क़ ने ग़ालिब निकम्मा कर दिया वर्ना हम भी आदमी थे काम के

Mirza Ghalib

ज़िन्दगी से हम अपनी कुछ उधार नही लेते कफ़न भी लेते है तो  अपनी ज़िन्दगी देकर

Mirza Ghalib

इश्क़ पर जोर नहीं है ये वो आतिश 'ग़ालिब' कि लगाये न लगे और  बुझाये न बुझे

Mirza Ghalib

उन के देखे से जो आ जाती है मुँह पर रौनक़ वो समझते हैं कि बीमार का  हाल अच्छा है

Mirza Ghalib

दिल से तेरी निगाह जिगर तक उतर गई दोनों को इक अदा में  रज़ामंद कर गई

Mirza Ghalib

ऐ बुरे वक़्त ज़रा अदब से पेश आ क्यूंकि वक़्त नहीं लगता वक़्त बदलने में

Mirza Ghalib

हम वहाँ हैं जहाँ से हम को भी कुछ हमारी खबर नहीं आती

Mirza Ghalib

हम न बदलेंगे वक़्त की रफ़्तार के साथ जब भी मिलेंगे अंदाज पुराना होगा

Mirza Ghalib

कितना ख़ौफ होता है शाम के अंधेरों में पूछ उन परिंदों से जिनके घर नहीं होते

Mirza Ghalib

कितना ख़ौफ होता है शाम के अंधेरों में पूछ उन परिंदों से जिनके घर नहीं होते

Mirza Ghalib