धूप से निकलो घटाओं में नहा कर देखो ज़िन्दगी क्या है किताबों  को हटा कर देखो

Nida Fazli

पत्थरों में भी ज़ुबाँ होती है दिल होते हैं अपने घर की दर-ओ-दीवार  सजा कर देखो

Nida Fazli

हर घड़ी ख़ुद से उलझना है मुकद्दर मेरा मैं ही कश्ती हूँ मुझी में है  समंदर मेरा

Nida Fazli

फ़ासला नज़रों का धोखा भी तो हो सकता है वो मिले या न मिले हाथ बढ़ा कर देखो

Nida Fazli

अपनी मर्ज़ी से कहाँ अपने सफ़र के हम हैं रुख़ हवाओं का जिधर का है उधर के हम हैं

Nida Fazli

पहले हर चीज़ थी अपनी मगर अब लगता है अपने ही घर में किसी  दूसरे घर के हम हैं

Nida Fazli

अब किसी से भी शिकायत न रही जाने किस किस से गिला था पहले

Nida Fazli

जिसे भी देखिए वो अपने आप में गुम है जुबां मिली है मगर हमजुबां  नहीं मिलता

Nida Fazli

ज़िंदगी का मुक़द्दर सफ़र दर सफ़र आखिरी सांस तक बेक़रार आदमी

Nida Fazli

हर तरफ हर जगह बेशुमार आदमी फिर भी तनहाइयों का  शिकार आदमी

Nida Fazli