हम समझदार भी इतने हैं के उनका झूठ पकड़ लेते हैं और उनके दीवाने भी इतने के फिर भी यकीन कर लेते है
Gulzar
दौलत नहीं शोहरत नहीं,न वाह चाहिए “कैसे हो?” बस दो लफ़्जों की परवाह चाहिए
Gulzar
कभी जिंदगी एक पल में गुजर जाती है कभी जिंदगी का एक पल नहीं गुजरता
Gulzar
जब से तुम्हारे नाम की मिसरी होंठ से लगाई है मीठा सा गम मीठी सी तन्हाई है।
Gulzar
पलक से पानी गिरा है, तो उसको गिरने दो, कोई पुरानी तमन्ना, पिंघल रही होगी
Gulzar
आप के बाद हर घड़ी हम ने आप के साथ ही गुज़ारी है
Gulzar
तुमको ग़म के ज़ज़्बातों से उभरेगा कौन, ग़र हम भी मुक़र गए तो तुम्हें संभालेगा कौन
Gulzar
अच्छी किताबें और अच्छे लोग तुरंत समझ में नहीं आते हैं, उन्हें पढना पड़ता हैं
Gulzar
इतना क्यों सिखाए जा रही हो जिंदगी हमें कौन से सदिया गुजारनी है यहां
Gulzar
थोड़ा सा रफू करके देखिए ना फिर से नई सी लगेगी जिंदगी ही तो है
Gulzar